Sadhana Shahi

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रवि कुलभूषण को महाशक्ति का आशीषApr-19,2024

12- रविकुलभूषण को महाशक्ति का आशीष (दशमी)

घनघोर अंँधेरा छाया था, दिक् नज़र नहीं जब आया था। प्रभु सागर तट पर बैठे हैं, सागर गर्जन उर पैठे हैं।

चिंता आ उनको घेरी है, मानो उत्साह न नेरी है । पाहन से ध्यान में लीन राम, मन है शंकित सूझे न काम।

रावण जय सोच अकुलाते हैं, स्व-पराजय सोच मुरझाते हैं। कोई अरि दमित है कर न सका, है कौन जो राम से नहीं थका?

क्यों इतना आज अकुलाते हैं, रावण सम्मुख असमर्थ क्यों पाते हैं। मन में है जो अंतर्द्वंद चला। वह बन गया राम के हेतु बला।

रघुवंश शिरोमणि कुछ बोले, चुप्पी तोड़े इत- उत डोले। हे मित्र! यह युद्ध कैसे जीतें? शक्ति उतरीं रावण पीछे।

रावण माॅं का आह्वान किया, माॅं ने है उसका मान किया। दशरथ सुत भाव-विभोर हुए , रुॅंधा ऊर तम चहुॅंओर हुए।

माॅं अन्यायी के संग हुईं, भला यह है कैसी जंग हुई! गहन वेदना राम को घेरे है, बड़े आकुल प्रभुवर मेरे हैं।

संगी- साथी सब शांत हुए, सब के सब बड़े ही क्लांत हुए। धराशाई तेज लखन का हुआ, चिंतित है राम का सैन्य हुआ।

धैर्य आज हुआ विचलित है, जाने क्या करता इंगित है। वातावरण बड़ा ही विषम हुआ, सब सोचें जाने क्या खम है हुआ।

व्यथित प्रभु अनियंत्रित हुए नहीं, संयम कुछ क्षण खोए कहीं । विधि को सोचे हैं प्रभु राम , चिंतित हैं जानकी के प्राण।

महाशक्ति अन्याय के साथ खड़ी, मुझे करके पराया माॅं हैं तड़ी। शक्ति का भयानक खेल यह युद्ध , बाणों को निरखें राम प्रबुद्ध।

प्रभु पतन के बड़े संहारक हैं, पैने शर उनके अरि मारक हैं। पर महाशक्ति ने रोक दिया, मानो खंजर है भोंक दिया।

अधर्मी शक्ति का सगा बना! राम अपना होकर ठगा बना। संशय जब सबके मन में थे, जांबवान सकारात्मकता संग में थे।

शक्ति पूजा का परामर्श दिए, मानो कुलभूषण को हर्ष दिए। हे प्रभु!नहीं विचलित होवें, खो आत्मबल ना विस्मित होवें।

व्याकुलता का ना कोई कारण है, हर बाधा का यहाॅं निवारण है। महाशक्ति का पूजन करें आप, फिर देखें माॅं का शक्ति प्रताप।

जस रावण को आशीष मिला, माॅं का उसको बक्शीश मिला। तस आपको भी मिल जाएगा, सिंहासन उसका हिल जाएगा।

आतंकी है बनाअन्याय स्रोत, महाशक्ति से प्रभु ओत-प्रोत। हर संशय मन से दूर करें , स्वयं को ना मज़बूर करें।

अराजक की अराजकता, होगी अतिशीघ्र ही ध्वस्त। प्रभु और मांँ जब होंगे एक, प्रभु महाशक्ति होंगें विश्वस्त।

अराधन संशय तज आप करें, प्रभु यश ,प्रताप टारे न टरे। उस दानव की है क्या बिसात, जो प्रभु के मारे न मरे।

जब तक शक्ति ना अर्जित हो, प्रभु रणभूमि से वंचित हों। निश्चित माॅं का आशीष मिले, रावण पर वज्र कुलिस गिरे।

लखन महासेना के हों नायक, सब शुभ होगा मंगल दायक। मार्गदर्शक मध्य में हों अंगद, टूटेगा छलिया का मद।

दक्षिण में होंगे जांबवान, वामा दिक् में होंगे हनुमान। सुग्रीव,विभीषण दलपति सारे , यत्र- तत्र विचरें ज्यूॅं नभ में तारे।

हे प्रभु ! निराशा झट त्यागें, झुकें महाशक्ति के बस आगे। जांबवान की ऐसी दृढ़ता देख, प्रभु शक्ति अराधना हेतु गए बैठ।

वो कुशल सैन्य संचालक थे, पितु सम सेना के पालक थे। प्रभु आसन पर हुए विराजमान, असिद्धि को तज सिद्धि को जान।

एक सौ आठ नीलकमल आया था, माया ने एक विलगाया था। जब जाप पूर्णाहुति और बढ़ा, प्रभु आशा का बड़ा जोर चढ़ा।

माॅं पग प्रभु देख हुए हर्षित, करना था जलज उन्हें अर्पित। कर ज्यूॅं ही आगे बढ़ाए थे, लखि ना पंकज घबराए थे।

प्रभु ध्यान अचानक भंग हुआ , शुरू कंपित होना अंग हुआ। निर्मल पलकें अब उनकी खुलीं , वारिज स्थान रिक्त कौन किया खली?

जप पूर्ण समय निकट अब था , प्रभु सम बाधा बड़ा विकट तब था। तज आसन प्रभु को ना उठना था, जप को ना मध्य में रुकना था।

जप भंग असिद्धि होगी तय, प्रभु अश्रु धारा बहे नयन से द्वय। प्रभु का अंतर्मन करे क्रंदन, क्यों विरोध करे सदा अभिनंदन।

धिक् यह जीवन साधन सारे, जानकी उद्धार में जो हारे। अब प्रिया की मुक्ति दुष्कर थी, वह शक्ति सामान्य नहीं पुष्कर थी।

अगले क्षण प्रभु धीरज धारे, दीनता को वो झट से हारे। बाधा सम्मुख ना झुकना था, किसी शर्त पर जप ना रुकना था।

दृढ़ता ,अदैन्यता राम गाहे, वो कर डाले जो वो चाहे। माॅं कहती थी उन्हें राजीव नयन, यह सोच प्रभु किए उन्नयन।

प्रभु पुरश्चरण की ओर बढ़े, कौशल्येय नेत्र ही माॅं को चढ़े। राजीव नयन होगा अर्पित, हर बाधा अब होगी मूर्छित।

प्रभु का अंतिम जप पूर्ण होगा, दशानन का दंभ अब चूर्ण होगा। प्रभु तुरत तुणीर उठाए थे, जो ब्रह्मशर भरकर आए थे।

ब्रह्मास्त्र दाएॕं कर में थामें, दाएॕँ नेत्र को लगे वो संधाने। बस,नेत्र भेदन होने वाला था, तब सकल ब्रह्मांड काॅंपने लगा।

महाशक्ति प्रभु सम्मुख प्रकट हुईं, धर्म रक्षक विपदा ना विकट हुई। हे राम ! धन्य है भक्ति धन्य , राघव वर लो तुम वर्ण्य विषय।

प्रतिमा माॅं देख हुए हर्षित, प्रभु पाए थे फल वांछित। बामा पग असुर स्कंध पर था, दायाॅं पग सिंह के ऊपर था।

अस्त्र-शस्त्र सभी कर शोभित थे, जो कर रहे प्रभु को मोहित थे। मुख मंडल पर मुस्कान विराजित था, अब ना प्रभु हित कुछ बाधित था।

सकल सुषमा इस सम अब लज्जित था, भयंकर युद्ध का राग अब गुंजित था। माॅं वामा दिक् वीणापाणि थीं, दायाॅं दिक् नारायण नारी थीं।

लंबोदर बाएॕं पार्श्व उपस्थित थे, दाएॕं मे़ प्रभु कार्तिक थे। शक्ति का अद्भुत रूप देख, श्रद्धा से भरे प्रभु गह विवेक।

माॅं चरण कमल प्रभु किए वंदन, गह विनम्रता माॅं का किए अभिनंदन। विजयी भव आशीष हाथ, माॅं धर दी प्रभु राम माथ।

पुरुषोत्तम गात माँ करीं प्रवेश, तब प्रभु राम का मिटा क्लेश। समाप्त हुआ छलिया का खेल, जब शक्ति, राम का हुआ मेल।

फिर राम- रावण का युद्ध हुआ, जग चौंका सत्य प्रबुद्ध हुआ। सत्य-असत्य दोनों टकराए थे, अब प्रभु तनिक नहीं घबराए थे।

धर्म जीता अधर्म जब हारा था , जग तम को प्रभु ने मारा था। देवलोक से पुष्प की वर्षा हुई, रामविजय की वहाॅं भी चर्चा हुई।

आशा विजयी निराशा हुई पराजित, यह विजय दिखाता प्रतिमान सांस्कृतिक। अब सीता की मुक्ति निश्चित थी, ख़ुशी भी मानो अब हर्षित थी।

यह रण कोई सामान्य नहीं, इसने मानव अंतर्द्वंद्व गही। जो संघर्ष करना सिखलाती है, जिजीविषा का राह दिखाती है।

यह है दो जन का युद्ध नहीं, असत्य-सत्य संघर्ष की कथा यही। जीवन में यदि ऐसा होवे , सत्- असत् संग यदि मिल जावे।

मानव ना इससे घबराना तू, प्रभु का स्मरण कर जाना तू। ऐसा ना सदा ही होता है, असत्य सदा सत्य से रोता है।

खल को हैं सज्जन मिल जाते, मुख मंडल उनके खिल जाते। पर अंत में विजयी सत् होता, पराजय सदा असत् गहता।

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3 Comments

Mohammed urooj khan

20-Apr-2024 11:13 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

19-Apr-2024 06:26 PM

👌🏻👏🏻

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Anjali korde

18-Apr-2024 02:49 PM

V nice

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